हर लम्हा,
हर घड़ी,
वक्त के साथ,
हम बहते चले जाते है।
कभी किसी झील,
कभी कोई नीली नदी,
और कभी एक वृहद् समुन्द्र में,
हम समा जाते है ।
कोई इस बूंद से न पूछे कभी,
की इसे जाना कहाँ है,
मान लेते है सब इसे भी भीड़ में चलना है,
और पाना यह जहान है।
फिर एक दिन एक प्यारी परी ने उस बहती नदी के किनारे,
इस बूंद को अपने हथेलियों पर उठाया,
और मेरी इस भागती जिंदगी में,
एक गहर ठहराव आया।
आज जब कोई पूछें मुझे -
"हे बंधु, तुम्हे जाना कहाँ है!",
सच तोह यह है की ख़ुशी जहाँ हो,
मुझे जाना वहाँ है।
उस खुशी कि खोज में,
मैं गहरे समंदर में समां गया,
ख़ुशी मिली न मुझे,
और अंधकार छा गया।
तब उस परी की यादों ने मुझको संभाला,
मांगी थी थोड़ी सी ख़ुशी,
मगर तेरी एक मुस्कराहट में,
सारा जहान मैंने पाया।
No comments:
Post a Comment
Comment will be sent for moderation.